पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध | Environment Pollution Essay in Hindi


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प्रदूषण की समस्या पर निबंध प्रस्तावना : 

विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है, वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं । प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में से जन्मा हैं और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं । 



Environment Pollution Essay in Hindi पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध | Environment Pollution Essay in Hindi
Environment Pollution Essay in Hindi 




प्रदूषण का अर्थ :


     प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना । न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना । प्रदूषण कई प्रकार का होता है! प्रमुख प्रदूषण हैं - वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण ।


     प्रदूषण के प्रकार 


     वायु-प्रदूषण : 

    महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है । वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है । 


    ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है ।  


     हवा में प्रदूषकों के मिलने से हवा प्रदूषित हो जाती है । यह हवा मनुष्य के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती है । कारखानों से निकला जहरीला धुंआ वायु में मिल जाता है । यह वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है । वाहनों से निकला धुंआ भी वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है । 


    वायु-प्रदूषण द्वारा होनेवाली मौतों का इतिहास अत्यंत दुखद है । सन् 1952 में लंदन में काला कोहरा (Black FOG) पड़ा था जिसमें मौजूद सल्फर डाई-ऑक्साइड गैस ने लगभग 4 हज़ार लोगों के प्राण ले लिए थे । 


    इसी कड़ी में भोपाल के यूनियन कार्बाइड कंपनी गैस कांड में ‘मिक’ गैस के रिसने से लगभग 2500 व्यक्तियों के मुंह में वह ज़हरीली गैस चली गई जिससे उनकी मृत्यु हो गई, इसके अलावा उसके दुष्प्रभाव को अभी भी हज़ारों लोग भोग रहे हैं ।


    वायु प्रदूषण (Pollution) के मुख्य कारण हैं-उद्योगों का कूड़ा-करकट, कार्बन, मोटर आदि वाहनों द्वारा छोड़ी जानेवाली जहरीली गैसों रेडियोधर्मी पदार्थ आदि ।


     एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार हमारे वायुमंडल में विषाक्त रासायनिक पदार्थ इतने तीव्र गति से छोड़े जा रहे हैं कि इन सबके प्रभावों का आकलन करना कठिन हो रहा है ।


     इराक़ पर हुई बम वर्षा और वहाँ के तेल कुओं में लगी आग से कितने टन विषाक्त पदार्थ वायुमंडल में फैले इसका अनुमान लगाना असंभव है । इतना ही जान लेना पर्याप्त है कि वहाँ पर दो-तीन बार काले पानी की वर्षा हुई ।

     

     जीव-जंतुओं के अलावा पेड़-पौधे और भवन तक वायु-प्रदूषण द्वारा प्रभावित हो रहे हैं । आगरा के ताजमहल को वायु-प्रदूषण से बचाने की दृष्टि से उद्योगों को अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाने पड़े हैं । 

    वायु प्रदूषण का ही एक रूप कार्बनिक गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन है जिससे औज़ोन पर्त में छिद्र हो गया है तथा पराबैंगनी किरणों का दुष्प्रभाव धरती भोग रही है ।

     इसी तरह इन ताप-अवशोषक गैसों में निरंतर हो रही वृद्धि से धरती का ताप बढ़ रहा है तथा धरती की वनस्पति एक नए संकट को झेल रही है । 


     जल-प्रदूषण : 


      बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है । इस प्रदूषित जल को पीने से कई प्रकार की गम्भीर बीमारिया हो जाती है ।

    कारखानों से निकलने वाला अशुद्ध जल और रासायनिक पदार्थ नदियों और समुद्र के जल मिलकर उसे प्रदूषित कर देता है । 


     ध्वनि-प्रदूषण : 

    मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए । परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है । 


    फैक्टरियों की मशीनरी से निकलने वाली आवाज ध्वनि प्रदूषण की जिम्मेदार है । वाहनों का अत्यधिक शौर भी ध्वनि प्रदूषण पैदा करता है । इससे इंसानो में बहरापन और तनाव पैदा होता है । 


    मशीनों की आवाज़ तथा लाउडस्पीकर आदि के कारण ध्वनि-प्रदूषण की समस्या भयंकर होती जा रही है । 

    ध्वनि-प्रदूषण से मानव को अनेक मानसिक और मनोवैज्ञानिक विकारों का सामना करना पड़ता है । शादी, उत्सवों, त्योहारों आदि अवसरों पर होनेवाला ध्वनि-प्रदूषण अनेक व्यक्तियों की नींद हराम करता रहता है । 


    मृदा प्रदूषण 

    मिट्टी में प्रदूषकों के मिलने से मृदा प्रदूषण होता है । आजकल खेती में फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है । इससे कीटनाशक मृदा की उवर्कता को खत्म कर देते है । 


    प्रदूषणों के दुष्परिणाम: 


    उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है । खुली हवा में लम्बी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी । गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं


     जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं । भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए ।

     पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है । सुखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है ।



     प्रदूषण के कारण:


     पर्यावरण प्रदूषण (Environment Pollution) के कारणों में प्रमुख हैं-निरंतर बढ़ते हुए कल-कारखानों, वाहनों द्वारा छोड़ा जानेवाला धुआं, नदियों, तालाबों में गिरता हुआ कूड़ा-करकट, वनों की कटाई, रासायनिक खादों का बढ़ता प्रयोग, बाढ़ का प्रकोप, मिट्टी का कटाव एवं निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या । 

    अभी तक पर्यावरण प्रदूषण की समस्या बहुत-कुछ नगरों तक सीमित थी, परंतु अब गाँव भी इसकी चपेट में आते जा रहे हैं । जल-प्रदूषण: पृथ्वी का तीन-चौथाई भाग पानी से ढका किंतु उसमें केवल 3 प्रतिशत जल पीने योग्य है ।

     समुद्र के अलावा पृथ्वी तल का अन्य पानी भी पीने योग्य नहीं रहा है । भारत की अधिकतर नदियों का पानी न केवल पीने योग्य है बल्कि नहाने और पशुओं पीने योग्य भी नहीं है । 


    केवल उसमें से 30 प्रतिशत पानी ही साफ करके पीया जा सकता है । जल-प्रदूषण के कारण पेचिश, खुजली, पीलिया, हैज़ा आदि बीमारियाँ बढ़ रही हैं । 

    पिछले वर्षों में सूरत एवं दिल्ली फैले प्लेग में हुई व्यापक मानव-मृत्यु ने जल प्रदूषण की समस्या का विकराल रूप हमारे सामने रखा है । 

     प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं । 

    प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है । वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है । घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है । 


     उपाय : 


    विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं, हरियाली की मात्रा अधिक हो । सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों । 

    आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों । कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए । 


    पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध पर्यावरण प्रदूषण प्रकृति का अभिशाप है जो मानव के कारण होता है । 

    इंसान ने प्रकृति में असंतुलन पैदा किया है जिससे प्रदूषण के रूप में प्रकृति का प्रकोप दिखाई दे रहा है । 

    आज के समय मे मनुष्य को ना शुद्ध खाना मिल रहा है और ना ही शुद्ध पानी और हवा मिल रही है । 

    यहां तक कि रहने के लिए शांत वातावरण भी नही मिल रहा है । पानी, हवा में प्रदूषकों के मिलने से प्रकृति के यह तत्व प्रदूषित हो जाते है ।


     

    विकास और पर्यावरण – 


    एक आधारभूत बहस: पर्यावरण (Environment) के साथ अंधाधुंध छेड़खानी विकास के नाम पर हुई है ।ग़रीबी उन्मूलन के नाम पर धरती के संसाधनों का बेतहाशा दोहन किया गया, फलस्वरूप एक ओर धरती के अपने परिवेश में असंतुलन आया दूसरी ओर उस कच्चे माल से कारखानों में जिस तकनीक से उत्पादन किया गया उसमें धातु, जल, गैस एवं अन्य रासायनिक द्रवों से प्रदूषण बढ़ा । इन दो तरह की प्रक्रियाओं से वस्तुओं का उत्पादन तो बढ़ा किंतु प्रदूषण ने स्थायी तौर पर मनुष्य को रुग्ण कर लिया । 

    उस रुग्णता के रहते स्थायी विकास की संभावना कहाँ । वस्तुत: विकास तो वह है जिसमें समाज के सभी लोग स्थायी तौर पर स्वस्थ और सुखी रहें ।

     वह उत्पादन विकासकारी नहीं है जो बहुत मात्रा में तो होता है किंतु हमारे पर्यावरण संतुलन को नष्ट कर देता है । उस उत्पादन से जो आर्थिक विषमता फैलती है उससे तो आर्थिक-सांस्कृतिक प्रदूषण और फैलता है ।

     हमें विकास की पश्चिम द्वारा दी गई परिभाषा छोड़नी चाहिए तथा भौतिक संसाधनों के दोहन एव उनके उत्पादन में कम प्रदूषण पैदा करनेवाली (पशु, सौर, पवन, समुद्री लहरें, भूमिगत ताप और नदी के बहाव से जल विद्युत) ऊर्जा-स्रोतों को काम में लेना चाहिए ।

     बड़े और केंद्रीकृत उद्योगों के स्थान विकेंद्रीकृत लघु उद्योगों को अपनाना चाहिए जो आर्थिक विषमता में कमी तथा सर्वोदय तो करते ही हैं साथ ही प्रदूषण भी नहीं फैलाते । 

    दरअसल सवाल विकास से पहले संरक्षण का है, विनाश से बचने का है, इसलिए प्रदूषण का प्रश्न विकास से अधिक आधारभूत है, यह संपूर्ण प्राणिजगत् और मानवता का सवाल है । 

     

    रसायनों एवं कीटनाशकों द्वारा प्रदूषण: 

    विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अधिकांश कीटनाशकों को विषैला घोषित कर दिया है । इसके बावजूद भारत में कीटनाशक दवाईयाँ एवं कृत्रिम उर्वरकों का प्रयोग तेजी से बढ़ता जा रहा है । 

    1971 से 1995 के बीच के दशक में हरित क्रांति की बड़ी भूमिका रही है किंतु इस अवधि में यूरिया, फासफोरस और पोटाश उर्वरकों के प्रयोग में लगभग छह गुना वृधि हुई है जिसकी किसानों को बड़ी लागत चुकानी पड़ रही है । 

    कीटनाशकों का छिड़काव करनेवाले व्यक्तियों को रतौंधी, लकवा, मस्तिष्क-ज्वर एवं आँख पर दुष्प्रभाव आदि अनेक रोग तो होते ही हैं साथ ही फल, सब्जी आदि भी प्रभावित होते हैं जिसका बुरा असर उनका उपयोग करनेवालों पर होता है । 

    भारत में लगभग 10,000 कारख़ाने रासायनिक कार्य से जुड़े हुए हैं, इनमें काम करनेवाले श्रमिकों को तरह-तरह के रोग होते हैं और अनेक मृत्यु को प्राप्त होते हैं ।

     टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट (टेरी) के एक अध्ययन के अनुसार पर्यावरण प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के विनाश से सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का 10 प्रतिशत से अधिक नुकसान हो रहा है । 


    सब्जियों और यहाँ तक कि दूध में भी रासायनिक प्रदूषण चिंताजनक स्तर पर पहुँच रहा है । इसी तरह रसायनों एवं कीटनाशकों से सैंकड़ों जैव प्रजातियों का लोप होता जा रहा है जबकि जैव विविधता पर्यावरण की अंत: क्रियाओं के खतरों के प्रति बीमा की तरह भी कार्य करती है । 


    वृक्षों की कटाई द्वारा प्रदूषण: 


    वृक्ष कार्बन डाइ-ऑक्साइड को शुद्ध करके ऑक्सीजन प्रदान करते हैं किंत वृक्षों की कटाई के द्वारा जिस तरह से जंगल-दर-जंगल सफ़ाई होती जा रही है उससे पर्यावरण में कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड को कम करने की प्राकृतिक क्रिया ही धीमी होती जा रही है ।


     औद्योगिक विकास के कारण पर्यावरण का जो प्रदूषण बढ़ता जा रहा है उसको हम गरीबी और अशिक्षा के कारण न तो भली प्रकार समझ पा रहे हैं और न उसका निवारण करने में अपने-आपको सक्षम ही पा रहे हैं ।

     इसलिए इस घने होते जा रहे प्रदूषणों की ओर निरंतर बढ़ते जाना हमारे लिए चिंता का विषय है । निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए गाँवों, कस्बों विशेषकर बड़े शहरों में सुख-सुविधाओं जुटाने के लिए अनेक विकास-कार्य किए जा रहे हैं किंतु वे अत्यंत अपर्याप्त । 

    सुर्नियोजन ढंग से बस्ती बसाने के लिए, स्वच्छ जल एवं भोजन जुटाने के लिए पर्याप्त कार्य नहीं किया जा रहा है । बस्तियों में जिस प्रकार का प्रदूषण है उसको अधिक वित्तीय साधन जुटाकर, लोगों में पर्यावरण के प्रति चेतना पैदा करके एक अभियान के तहत कार्य करने की, उसे तत्काल हटाने की आवश्यकता है । हमको नदियों में कूड़ा एवं मलबा बहाना बंद करना चाहिए । 

    पानी का दुरुपयोग बंद करके उसके संरक्षण के उपायों पर अमल करना चाहिए । बस्तियों के कचरे को बहुत दूर ढककर डालना चाहिए । 


    प्रदूषण नियंत्रण के उपाय:


     पर्यावरण प्रदूषण (Environment Pollution) को रोकने के लिए शहरों में परिवहन की नीति में इस तरह परिवर्तन करने की ज़रूरत है कि ज़हरीली गैसें फैलानेवाली परिवहन तकनीक का उपयोग कम करें एवं ऐसी तकनीक को बढ़ाएँ जो वायु-प्रदूषण को कम करती है । पेट्रोलियम पदार्थों से चलनेवाले साधनों एवं सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों की दिशा में गंभीरता से काम करना चाहिए । 

    विकास के नाम पर यदि ऐसी बस्तुएँ उत्पन्न हो रही हों जो ज़हरीली गैसों को बढ़ावा दे रही हों तो हमें ऐसे उपयोग पर भी नियंत्रण रखना है । वनों के संरक्षण करने एवं वृक्ष लगाने के कार्य को तेजी से एवं प्रभावी ढंग से करने की आवश्यकता है । वन हमारे रक्षक हैं । इनसे भू-क्षरण, भू-स्खलन तथा बाढ़ रुकती हैं । 

    अत: हरियाली बढ़ाने के लिए इनके सुनियोजित विकास पर ज़ोर देने की आवश्यकता है । फैक्ट्रियों और प्रयोगशालाओं के आसपास वृक्ष रोपे जाने चाहिए ताकि वायु और ध्वनि-प्रदूषण कम हो । हमारी नदियों एवं बाँधों के पानी को स्वच्छ रखने के लिए भी जन-जागरण की आवश्यकता है ।


     रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग भी बहुत सावधानी से एवं सीमित मात्रा में करने की आवश्यकता है तथा जैविक कीटनाशकों के उपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए । 


    ‘मेवाड़ पानी चेतना समिति’ का पानी कार्य, मीनासर का ‘गोचर आंदोलन’, खेजड़ी गाँव (जोधपुर) में हर वर्ष लगनेवाला बिश्नोइयों का मेला, चमौली (उ.प्र.) का ‘चिपको आंदोलन’, नर्मदा और टिहरी जैसे बाँधों पर प्रतिबंध लगाने के आंदोलन का हमारे पर्यावरण को स्वच्छ एवं संतुलित बनाए रखने की प्रेरणा देने के उत्तम उदाहरण हैं । 


    हमें इन आंदोलनों से सीख लेनी चाहिए । जोहांसबर्ग पृथ्वी सम्मेलन, क्योटो संधि कोपेनहेगन आदि इस दिशा में किए गए, उल्लेखनीय अंतरराष्ट्रीय प्रयास हैं । 


    पर्यावरण (Environment) के प्रति संवेदनशीलता का विकास: पर्यावरण (Environment) स्वच्छता का अर्थ है इस धरती पर सभी जीवधारियों का अस्तित्व और स्वास्थ्य । इसलिए सभी व्यक्तियों, राष्ट्रों को पर्यावरण के प्रति सही समझ विकसित करने की आवश्यकता है । प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति जागरूक होना ही है ।


     पर्यावरण हमारे जीवन की प्राथमिकता में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । विकसित देशों में ऊर्जा स्रोत के रूप में नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग पर नियंत्रण रखने का प्राथमिक सवाल है ।

     ऊर्जा के गैर-पारम्परिक स्रोतों की खोज करके, विशेषकर ऐसे स्रोतों की खोज करके जो पर्यावरण प्रदूषण बहुत कम करते हैं, हम पर्यावरण को स्वच्छ रख सकते हैं । आवश्यकता इस बात की है कि सब लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए उसको क्षति पहुँचाना बंद करें ।


     विकास, औद्योगीकरण तथा मानव स्वास्थ्य के बीच तालमेल बढ़ाएँ । औद्योगिक विकास के बारे में ढंग से सोचें । प्रकृति का दोहन बंद करें और समुचित दोहन के द्वारा प्रकृति और विकास का संतुलन बनाए रखें । भारत के आर्य ग्रंथों ने आज से हज़ारों वर्ष पूर्व कहा था प्रकृति हमारी माता है जो अपना सब- कुछ अपने बच्चों को अर्पण कर देती है ।’ अतःआवश्यकता है हम हमारी प्रकृति माँ को सुरक्षित रखने के लिए कुछ इस प्रकार का काम करें कि वह भी स्वच्छ रहे और हम भी स्वस्थ-स्वच्छंद रहें । 

     


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